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रामनवमी

🦚 *रामनवमी*-🦚 
👉 *गु.चैत्र शुक्लपक्ष- नवमी-* *१०-एप्रिल-२२-रविवार* 🦚

🙏मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्मदिवस (रामनवमी) है. 
*पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों में से चार अवतारों (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्रीवामन) को मान्यता दी है!* 
 *इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है एवं इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है.*
*जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों.*

🍁 *प्राचीन वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.*

*कुछ वैष्णवों ने पूछा था कि भगवान विष्णु के दशावतारों में से श्री महाप्रभुजी ने केवल चार अवतारों को ही क्यों मान्यता दी है.*

🌺 इसका उत्तर यह है कि 

🍁 *भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला पुष्टिलीला हैं* *पुष्टि का एक शाब्दिक अर्थ कृपा भी है.*
               *१ (२५)*

नौमी चैत की उजियारी।
दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी॥१॥

राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी।
ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी॥२॥

मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी।
पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी॥३॥

कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी।
घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी॥४॥
         *२*
कौसल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे

कौसल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे।
सुंदर बदन निहारकें हँसि कंठ लगावे॥१॥

पीत झगुलिया तन लसे पग नूपुर बाजे।
चलन सिखावे राम कों कोटिक छबि लाजे॥२॥

सीस सुभग कुलही बनी माथे बिंदु बिराजे।
नील कंठ नख केहरी कर कंकन बाजे॥३॥

बाल लीला रघुनाथ की यह सुने और गावे।
तुलसीदास कों यह कृपा नित्य दरसन पावे॥४!!
              *३
सुभग सेज सोभित कौसल्या

सुभग सेज सोभित कौसल्या रुचिर राम सिसु गोद लिये।
बाललीला गावत हुलरावत पुलकित प्रेम पीयुष पिये॥१॥

कबहू पौढि पय पान करावत कबहूं राखत लाय हिये।
बार बार बिधु बदन बिलोकत लोचन चारु चकोर पिये॥२॥

सिव विरंच मुनि सब सिहात हैं चितवत अंबुज ओट दिये।
तुलसीदास यह सुख रघुपति को पायो तो काहू न बिये॥३॥
             ४
।।रघुनाथो रामचंद्रो रामभद्रो रघुप्रियः।।"*
*"अस्मत्प्रसादसुमुखः कलया कलेश इक्ष्वाकुवंश अवतीर्य गुरोर्निदेशे !तिष्ठन् वनं सदयितानुज आविवेश यस्मिन् विरुध्य दशकन्धर आर्तिमाच्र्छत्!!"*

सर्वकलाओं के अधिपति भगवान् जब हमलोगों पर अनुग्रह करने के लिए प्रसन्नमुख होते हैं तब संकर्षणादि व्यूहात्मक कला के साथ इक्ष्वाकु के वंश में श्री रामरूप में अवतीर्ण होते हैं इस अवतार में पिता दशरथ की आज्ञा का पालन करने के लिए वे पत्नी एवं लघु भ्राता लक्ष्मण के साथ वनवास करते हैं तथा दशग्रीव रावण उनसे विरोध करके पीडा को प्राप्त होता है! आचार्य चरण श्री वल्लभ के अनुसार "अस्मत्प्रसादसुमुखः" इस पद द्वारा अन्तर्यामी के प्रसन्नता हेतु सात्विक हास की अभिव्यक्ति स्पष्ट हो रही है...

*पंचामृत समय का किर्तन*

            ५

राग : सारंग -
आज माई प्रकट भये हैं राम॥ 
 तीन गई दशरथ की सुनत मनोहर नाम॥1॥
बंदीजन सब कौतिक भूले राघव जन्म निधान॥
हरखे लोग सबे भुवपुर के युवतीजन करत हें गान॥2॥
जै जै कार भयो वसुधार संतन मन अभिराम॥
परमानंददास बलिहारी चरनकमल विश्राम॥3॥

*तिलक होय ता समय को किर्तन* 
              ६

राग : सारंग -
रघुकुलमें प्रकटे रघुवीर।।
देशदेशतें टीको आयो दिव्य रत्न मनिहीर।।1।।
घर घर मंगल होत बधाई अति पुरवासिन भीर।।
आनंद मगन भये अति डोलत कछुब सुधि न शरीर।।2।।
हाटक बहु इच्छाजो लूटायो रत्न गायदेचीर।।
देत असीस चूर चिरजीयो रामचन्द्र रणधीर।।3।।

*जन्माष्टमी की बधाई* 
आज बधाई को दिन नीको ।।
नन्द घरनी यशुमति जायो है लाल भामतो जीको।।1।।
पञ्च शब्द बाजे बाजत है घर घर ते आयो टीको ।
मंगल कलश लिये ब्रज सुंदरी ग्वाल बनावत छीको ।।2।।
देत असीस सकल गोपिजन चिरजीयो कोटि वरीसो ।
परमानंद दास को ठाकुर गोप भेख जगदीशो ।।3।।
               ७

*राग : सारंग -*
बैठे लाल फूलन की चौखंडी।।
चंपक बकुल गुलाब निवारो रायवेलि श्रीखंडी।।1।।
जाई जुई केवरो कुन्जो करन कनेर सुरंगी।।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधरजू की वानिक दिन दिन नव नवरंगी।।2।।

*महातम का किर्तन*८

राग : मालव
पद्म धर्यो जन ताप निवारन।।
चक्र सुदर्शन धर्यो कमल कर भक्तन की रक्षा के कारन।।1।।
शंख धर्यो रिपु उदर विदारन गदा धरी दुष्टन सिंघारन।।
चारों भुजा चार आयुध धरे नारायन भुव भार उतारन।।2।।
दीनानाथ दयाल जगत गुरु आरति हरन भक्त चिंतामन।।
परमानंददास को ठाकुर यह ओसर ओसर छांडो जिन।उ।3।।
              ९
*राग - सारंग*
आज अयोध्या मंगलचार।।मंगल कलश माल अरु तोरन बंदीजन गावत सब द्वार।।1।।
दशरथ कौशल्याजू कैकेई बेठे आय मंदिर के द्वार।।
रघुपति भवन शत्रु घन लक्ष्मण चार्यो धीर उदार।।2।।
एक नाचत एक करत कुलाहल पांयन नुपूर को झनकार।।
परमानंददास मनमोहन प्रकटे असुर संहार।।3।।
               १०

*शयन समय का किर्तन*

राग - कन्हरो
राम चन्द्र पद भजवे लायक।
अभयकरण भवतरण तपोंधन युग युग सखिवेद के वायक॥1॥
चितवत चरण सदा सुखदायक पाप ताप नहिं सुख के मायक॥
भक्तनकी रक्षा के कारण अनुदिन लिये रहत कर सायक॥2॥
गौंतम नारि ग्राह गजतारक,भक्त विभीषण के जु सहायक॥
सेवा अल्प सुमेरसी मानत करुणा सिंधु अयोध्या नायक॥3॥
जेपद रटत मुनि नारद शारद शेष सहस्त्र मुख पारण पार न पायक॥
जानकी रमण हरि सर्व शिरोमणी अग्रदास उर आनंद दायक॥4॥

एक समय *श्री गोकुलनाथजी* बैठक में बिराजे उस समय आपश्री ने *श्री रामचन्द्रजी* का प्रसंग कहा.....

एक समय *श्री जानकी जी* ने *श्री रामचन्द्रजी* से पूछा- प्रभु सकल जगत आपके कहे अनुसार चले लेकिन आप किसके कहे अनुसार चलो हो?

तब *श्री रामचन्द्रजी* ने कहा चलो हमारे साथ....

*श्री रामचन्द्रजी श्री जानकी* जी को आपके *अनन्य भक्त के घर ले गये।
उस भक्त के हाथ में कुछ रोग हुआ था। रोग होने के कारण प्रभु सुखार्थ हेतु उसने प्रभु की सेवा छोड़ दी थी और उसकी पत्नी को सेवा में रखा।

कुछ दिन पश्चात भक्त के हाथ में से दुर्गन्ध निकलने लगी तब वह घर छोड़कर नदी के पास रहने लगा।

(ये सोचकर घर छोड़ा की *प्रभु को दुर्गन्ध नही आवे)*

*श्री रामचन्द्रजी* उस भक्त के पीछे भागे और उनके पीछे जानकी जी।

*श्री रामचन्द्रजी* को आते देखकर उस भक्त ने कहा--- जो प्रभु निकट मत आना नहीं तो मेरे प्राण निकल जाएंगे।

*(प्रभु को शरीर की दुर्गन्ध से श्रम होगा इसलिए प्राण निकल जाएंगे)*

ये सुनकर *श्री रामचन्द्रजी* उसी स्थल पर ठाड़े रहे और जानकी जी से कहि.... जो सकल जगत मेरे कहने पर चले लेकिन मैं ऐसे भक्त के कहे अनुसार चलु।

ऐसा कहकर वहीँ से *श्री रामचन्द्रजी व श्री जानकी जी वैकुंठ पधारे।*

और जब उस भक्त का रोग ठीक हो गया तब वह सेवा करने लगा।

*ये प्रसंग कहकर श्री गोकुलनाथजी ने बताया की श्री ठाकुरजी भक्त के वश हैं और भगवद भक्त का सर्वप्रथम लक्षण ततसुख परायणता है।*

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